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बौद्ध साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रंथ 'धम्मपद' का अनुवाद अब सरल हिन्दी में

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25 अप्रैल 2011

नई दिल्ली। सर्वज्ञ बुद्ध की अमर कृति 'धम्मपद' का दुनिया भर की भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। लेकिन हिन्दी भाषा में अपेक्षाकृत उतने सहज और सरल अनुवाद अब तक उपलब्ध नहीं हैं। परिणाम यह है कि बौद्ध शिक्षा के प्रति हिंदी भाषी समाज, विशेषकर आम पाठकों में, में कई प्रकार के मिथकों और भ्रान्तियों की एक लम्बी परम्परा कायम हो गई है।

इस संदर्भ में बौद्ध साहित्यिक परम्परा के अध्ययनकर्ता ह्रषीकेश शरण द्वारा सम्पादित 'धम्मपद: गाथा और कथा(वर्ग 1-7) ' एक महत्वपूर्ण प्रयास है। पुस्तक में सहज व सरल भाषा में उन बौद्ध कथाओं का अनुवाद उपलब्ध है जो मूलत: पाली भाषा में होने के कारण हिंदी के पाठकों को एक जगह आसानी से उपलब्ध नहीं थीं। लेखक ह्रषीकेश शरण केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग में वरिष्ठ अधिकारी हैं और बौद्ध परम्पराओं के गहन अध्ययनकर्ता भी। इससे पहले 2007 में शरण सर एडविन ऑरनाल्ड की पुस्तक 'लाइट ऑफ एशिया' का हिंदी अनुवाद 'जगदाराध्य तथागत' के शीर्षक से कर चुके हैं।

गौरतलब है कि बुद्ध के वचनों को बुद्ध-देशना का नाम दिया गया था। आगे चलकर बुद्ध-देशना को तीन भागों में बांटा गया-सुत्तपिटक,अभिधम्मपिटक और विनयपिटक। सुत्तिपटक के अंतर्गत 'खुद्धक निकाय' आता है। खुद्धक निकाय के अंतर्गत 19 ग्रंथ आते हैं और इन्हीं ग्रंथों में से एक ग्रंथ है 'धम्मपद' जिसका अनुवाद विश्व की लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन कई भारतीय भाषाओं में अभी भी इसका अनुवाद उपलब्ध नहीं हैं।

धम्मपद को हिंदी में उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया में कई बौद्ध साहित्य विशेषज्ञों से भी विचार-विमर्श किया। उनकी यह पुस्तक बुद्ध की शिक्षाओं और उनके वचनों को आम सुधी पाठकों तक लाने का प्रयास है भाषा, शैली और पुस्तक की साज सज्जा में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि धम्मपद की गाथाओं को क्लिष्टता के दायरे से बाहर निकालकर रोचक बनाया जाए जिससे सभी आयु वर्गो के पाठक इसका आनंद और लाभ उठा सकें।

शरण की यह पुस्तक हिंदी भाषियों के लिए इस कमी को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। पुस्तक को आम पाठकों के लिए रोचक बनाने के लिए दाहिनी और के पृष्ठों पर कथाएं हैं जबकि बाईं और के पृष्ठों में उससे सम्बंधित चित्र, गाथा और उसका अर्थ दिया गया है।

पुस्तक में गाथाओं का अनुवाद इस शैली में किया गया है जिससे बुद्ध की शिक्षा मौजूदा समय में और भी अधिक व्यवहारिक और प्रासंगिक लगी है। मसलन पुस्तक में मौजूद 'कौसाम्बी के भिक्षुओं की कथा' का 'अर्थ' पाठकों को बताता है, "मूर्ख लोग नहीं समझते कि उन्हें एक दिन संसार से जाना ही होगा। जो इस बात को समझते हैं उनके कलह शांत हो जाते हैं। "

शरण कहते हैं, "आज समाज में सर्वत्र उच्छृंखलता फैली हुई है। उसे दूर करने के लिए बुद्ध उपदेश से बढ़कर और कोई दवा नहीं है।"

धम्मपद की एक गाथा में बुद्ध स्पष्ट करते हैं, "जैसे कोई पुष्प सुंदर और वर्धयुक्त होने पर भी गंधरहित हो, वैसे ही अच्छी कही हुई बुद्धवाणी भी फलरहित होती है यदि कोई उसके अनुसार आचरण न करे। " इस पुस्तक को ताईवान स्थित 'द कारपोरेट बॉडी ऑफ बुद्ध एजुकेशनल फाऊंडेशन' द्वारा नि:शुल्क वितरित किया जा रहा है।

(पुस्तक-धम्मपद: गाथा और कथा(वर्ग 1-7), लेखक व प्रकाशक: ह्रषीकेश शरण, नि:शुल्क वितरण: द कारपोरेट बॉडी ऑफ बुद्ध एजुकेशनल फाऊंडेशन)

 

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